Saturday, June 27, 2009

कागज़ के निशाँ

जब तुमने प्यार के निशाँ कागज़ पर बनाए थे

हमने उन निशाँ को सिरहाने पर सजाये थे

महसूस की थी हमने उन सांसो की महक

जब हमने उन निशाँ पर निशाँ मिलाये थे

रातों को जाग हमने दिन के सपने सजाये थे

जब हमने उन निशाँ पर निशाँ सजाये थे

याद है वो रात जब तुम सपनो में आए थे

सपनो में आकर ख्वाबों से जगाये थे

रख कर हाथों पर हाथ लकीरों को मिलाये थे

करता हूँ इंतजार याद है कल का इकरार

करीब से गुजरता है बदनसीब है खरीदार

कागज़ के दाम हमने भी चुकाए थे

सिरहाने कोरे लिहाफ बिछाये थे

वो पर ऐसे थे की शरीर को साँसों से

और साँसों को ख़ुद से चुराए थे

कब से खोई दुनिया में कागज़ के महल सजाये थे



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